सूना घर आंगन लागे है ए साथी /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

सूना घर-आँगन लागे है ए साथी
बिन तेरे ना मन लागे है ए साथी

तुझसे थीं हर सिम्त बहारें, बिन तेरे
उजड़ा हर उपवन लागे है ए साथी

दुख से बोझिल साँसें रूकने को आतुर
थमती सी धड़कन लागे है ए साथी

नयनों का जल भूला सब मर्यादाएँ
जब चाहे बरसन लागे है ए साथी

जाने क्या है तुझसे दो दिन की यारी
जन्मों का बन्धन लागे है ए साथी

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.