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सूनी हवेलियाँ / दिनकर कुमार
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क़स्बे की अधिकतर हवेलियाँ सूनी हैं
इनका सूनापन तँग गलियों में
विलाप करता है
कोई परदेशी इस तरफ क्यों नहीं आता
किसी हवेली में
हैं सौ कमरे
और पाँच सौ झरोखे
हवादार मुण्डेर
जहाँ बैठता है कबूतरों का समूह
किसी हवेली में रहती है
एक अकेली स्त्री
जो या तो विधवा है
या जिसका पति वर्षों से नहीं लौटा
उस अकेली स्त्री के सामने
हवेली की भव्यता
धुन्धली नज़र आने लगती है
सूनी हवेली भी
अकेली स्त्री
बन जाती है