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सूने घर में बच्चे / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
वे लौटते हैं घर
उनके कंधों पर होता है
बोझ बस्तों का
वे खोलते हैं किवाड़
परे रखते हैं बस्ता
हावी हो जाती है तन्हाई।
उनकी थकी आँखों में
भर जाती हैं उदासी।
वे तन्हाई में करते हैं
बातें दीवारों से
सूने घर में
अक्सर बच्चे
अपने माँ-बाप की
आवाज़ तलाशते हैं।