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सूनोॅ छै सौंसे बहियार / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
पानी पानी खोजने बुललौं, नदी, पोखरी, खेत, पथार
एक बूंद पानी न मिललौ सूनोॅ छै सौंसे बहियार।
सूरज भी चमकै हुमकै छै, नया जवानी पाबी केॅ
दूर कहीं सें बिरहा के सुर बेचैनी में आबी केॅ,
व्याकुल मन के घुरी सताबै, रही-रही के गरम बयार
एक बूंद पानी नै मिललौ, सूनोॅ छै सौंसे बहियार।
मन मछली के घोर उजड़लै, हाय विधाता की करल्हे
रिसी रिसी के सौसे सोखी कहाँ खजाना में धरल्हेॅ,
जीवन बिन जीवन की बचतै करल्हे कैन्हे हेनोॅ प्यार,
एक बूंद पानी न मिललौ सूनोॅ छै सौसे बहियार।
बाहर भीतर लड़तेॅ-भिड़तेॅ लहू लोहान होलोॅ गेलौं
बार बार ई गरमी से ही बड़ी बेशरम छी भेलौं,
सहलोॅ नै जाय छै आबे, माफ़ करी दे अबकी बार
एक बूंद पानी न मिललौ सूनोॅ छै सौंसे बहियार।