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सूरज, चमको ना / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
सूरज चमको ना
अंधकार भरे दिलों में
चमको ना सूरज
उदासी भरे बिलों में
सूरज चमको ना
डबडबाई आँखों पर
चमको ना सूरज
गीली पाँखों पर
सूरज चमको ना
बीमार शहर पर
चमको ना सूरज
आर्द्र पहर पर
सूरज चमको ना
अफ़ग़ानिस्तान की अंतहीन रात पर
चमको ना सूरज
बुझे हुए ईराक़ पर
जगमगाते पल के लिए
अरुणाई भरे कल के लिए
सूरज चमको ना
आज