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सूरज और गुलाबों के बारे में / मालती शर्मा
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					एक दूसरे के शौक़ और मजबूरी के लिए 
चौबीस करोड़ ठेकों-फफोलों भरी हथेली पर 
एक अवमूल्यित घिसे सिक्के-सा 
पड़ा है बाल-वर्ष 
नए जनतंत्र की टकसाल में 
अपना रूप खोजता 
वैसे उन्होंने इस वर्ष वायदा किया है 
हर खिलते सूरजमुखी को 
एक सूरज देने को 
अष्टावक्र टहनियों को 
वसंताक्षर बनाने का 
दारू भट्टी में सिंकते गुलाबों को 
पाटल बनाने का 
पर मुझे पता नहीं 
कि वे और तुम 
किस सूरज किन गुलाबों की बात करते हो? 
यहाँ तो 
सनातन सूर्योदयी संस्कृति के 
मेरे इस देश में 
हर दूसरे पल एक सूरज 
उगने से पहले ही 
किसी नाबदान में डूब जाता है।
	
	