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सूरज की आँख / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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सूरज की आँख
लहू में सनी ।
रिश्तों के हाथ
बाँचता है कौन
आहत -से घर -द्वार
हो गए मौन
बो गया कौन
यहाँ नागफनी।
पूछता नहीं अब
कोई भी कुशल
रात ही बची है
अँधेरों का हल
किरण की जान पर
अब आ बनी ।
सिमट गया उम्र-सा
एक-एक पल
छूटा है हाथ से
धुपहला आँचल
रहबर करने –
लगे राहज़नी ।
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