सूरज की किरणें लिखते हैं / राजा अवस्थी
सूरज की बस्ती में सत्ता
वैसे ही प्रकाश की होगी,
आओ! अँधियारे पृष्ठों पर
सूरज की किरणें लिखते हैं।
कितने कटे धरातल पर वन
कितना रेगिस्तान बढ़ा;
साक्षर हुईं योजनायें पर
होरी अब भी बिना पढ़ा;
आयेंगी प्रकाश की किरणें
अंधकार अज्ञान मिटेगा,
चौथे पहर रात को देखे
सपने कागज पर लिखते हैं।
यशोधरा राहुल को लेकर
सपने आश्वासन के बुनतीं;
कुँवर गये यह पास रहेगा
आसमान से ध्वनियाँ सुनतीं;
बोधगया में निरत तपस्वी
सहस्रार तक पहुँच चुके हैं,
प्राप्त हुआ बुद्धत्व बुद्ध बन
अनुभव अब अपने लिखते हैं।
जब-जब गीत सुनाये उसने
एक अमरता बरसी नभ से;
कितना नाद युगों से गुंजित
ऋषियों की वाणी का कब से;
माँ पत्नी बच्चों किस-किसका
जाने कितना समय चुराया,
कालिदास तब भोजपत्र पर
कुछ अपने सपने लिखते हैं।
एक दीप की लौ से जग का
तमस मिटायें ऐसा कौशल;
ब्रह्मनाद से गगन गुँजाए
पर्वत के झरनों का कल-कल;
शिलाखण्ड से जगे अहिल्या
वानर सेतु सिन्धु पर रच दें,
सब कुछ सम्भव हो जाता जब
बाल्मीकि अपने लिखते हैं।