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सूरज की रोशनी को परदे तले छिपाना / पूजा श्रीवास्तव
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सूरज की रोशनी को, परदे तले छिपाना
क्यूँ चाहते हो साहिब, मुझसे नज़र मिलाना
तूफान है नज़र में, साँसों में आंधियाँ हैं
सीखा नहीं है हमने, आहिस्ता गुज़र जाना
अपनी सी लग रही हैं, इस शह्र की फिज़ाएं
लगता है इस शहर में, है तेरा आशियाना
सब हाल तो बयाँ है, चादर की सिलवटों से,
दुश्वार किस क़दर था, तनहा शबें बिताना
दिल से जुदा भी कर दो, तो यादों में रहेंगे
तुमसे अगर हो मुमकिन, तो छीन लो ठिकाना
हम लड़कियाँ तो आँचल, से बांधती गगन हैं
ये बंदिशों के पिंजरे, हमको नहीं दिखाना
सीखेंगी पीढ़ियाँ भी, चाहत की रीत हमसे
दोहराएगा ज़माना, तेरा मेरा फ़साना
है शौक जान लेना, उनका मुहब्बतों में
हमने भी रख दिया दिल, तीरे नज़र निशाना