भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज को न्योता / रेवंत दान बारहठ
Kavita Kosh से
यह वक्त - एक सियाह रात है
रात जो बहुत डरावनी है
इस रात के सन्नाटे में असहनीय है
उल्लूओं और सियारों का शोर ।
इस रात में जागे और सोये हुए
सबके दिलों में अँधेरा है
इस अँधेरे में
देखी नहीं किसी ने किसी की शक्ल
यहाँ धुँधलका ही रोशनी का पर्याय है।
इस दुनिया के लोग उजाले से अनजान हैं
इस दुनिया के लोग सच से अनजान हैं
इस दुिनया में रोशनी का जिक्र भी नहीं हुआ
ओ सूरज! तुमको इस वक्त का न्योता है
अब आना पडेगा यहाँ
ताकि इस दुनिया के वाशिंदे जान सकें
कि उजालों का सच कितना असीम होता है।