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सूरज घर जाओ / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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					सांझ हुई सूरज! घर जाओ। 
खेलो कूदो मौज मनाओ॥
किरणों की सब डोर समेटे। 
चले चलो लेटे-ही-लेटे॥
कल तुमको फिर आना होगा। 
किरणों को फैलाना होगा॥
आओ फिर चिड़िया पर खोलें। 
कलियाँ भी निज घूंघट खोलें॥
अपने साथ उजाला लाओ। 
अन्धकार को दूर भगाओ॥
	
	