सांझ हुई सूरज! घर जाओ।
खेलो कूदो मौज मनाओ॥
किरणों की सब डोर समेटे।
चले चलो लेटे-ही-लेटे॥
कल तुमको फिर आना होगा।
किरणों को फैलाना होगा॥
आओ फिर चिड़िया पर खोलें।
कलियाँ भी निज घूंघट खोलें॥
अपने साथ उजाला लाओ।
अन्धकार को दूर भगाओ॥
सांझ हुई सूरज! घर जाओ।
खेलो कूदो मौज मनाओ॥
किरणों की सब डोर समेटे।
चले चलो लेटे-ही-लेटे॥
कल तुमको फिर आना होगा।
किरणों को फैलाना होगा॥
आओ फिर चिड़िया पर खोलें।
कलियाँ भी निज घूंघट खोलें॥
अपने साथ उजाला लाओ।
अन्धकार को दूर भगाओ॥