भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज जागा तुम भी जागो / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
सूरज जागा तुम भी जागो
किरणे आई अब तो जागो
पेड़ जग गये चिड़ियाँ जागी
क्यारी में कलियाँ भी जागी
गैया मैया रंभा रही है
बें बें करके बुला रही है
उठो अभी आँगन में आओ
चिड़ियों का गाना सुन जाओ
आओ आओ-आओ आओ
मंजन कर लो मुँह धो आओ
दूध पियो फिर खेलो जाकर
ठुम्मुक ठुम्मुक भागो दिनभर