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सूरज जैसा तेज जमीं पर बरसाने की कोशिश में / ब्रह्मदेव शर्मा
Kavita Kosh से
सूरज जैसा तेज जमीं पर बरसाने की कोशिश में।
झुलस गया खुद चाँद जमीं को झुलसाने की कोशिश में॥
हँसी रात के मुख से गायब दुखी हुए झिलमिल तारे।
मुँह टेढ़ा कर बैठा चंदा मुस्काने की कोशिश में॥
छत पर बैठी रही चाँदनी आँगन से रूठी रूठी।
दालानों ने किया रतजगा बहलाने की कोशिश में॥
कढ़े साँतिये उसने छूकर ओढ़ा वंदनवारों को।
कलियों को फिर चूमा उसने महकाने की कोशिश में॥
धूप जली बैठी है मेरे साये की कुछ गर्मी से।
धुँआ धुँआ पानी-पानी हिम दहकाने की कोशिश में।
जाने क्या-क्या उल्टी सीधी हरकत बादल कर बैठा।
श्यामल घटा झमाझम नाची शरमाने की कोशिश में॥
मंजिल तक ले जाने वाली पगडंडी पर पैर रखे।
चौराहे फिर शुरू हो गये बहकाने की कोशिश में॥