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सूरज ढलते और निकलते देखा है / रामश्याम 'हसीन'
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सूरज ढलते और निकलते देखा है
हमने करवट वक़्त बदलते देखा है
इक-दूजे से लोग जला करते हैं, पर
हमने कुछ को ख़ुद से जलते देखा है
जिन आँखों में सिर्फ़ अँधेरे पलते थे
उन आँखों में सपने पलते देखा है
मदहोशी में बदनामी भी मुमकिन है
उनको गिरते और सँभलते देखा है
पहली बार किसी ने दुनिया में हमको
यूँ आँखों को मलते-मलते देखा है