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सूरज दादा / इंदिरा गौड़
Kavita Kosh से
तुम बिन चले न जग का काम,
सूरज दादा राम राम!
लादे हुए धूप की गठरी
चलें रात भर पटरी-पटरी,
माँ खाने को रखती होगी
शक्कर पारे, लड्डू, मठरी।
तुम मंजिल पर ही दम लेते,
करते नहीं तनिक आराम!
कभी नहीं करते हो देरी
दिन भर रोज लगाते फेरी
मुफ्त बाँटते धूप सभी को-
कभी न करते तेरा मेरी।
काँधे गठरी धर चल देते-
साँझ हाथ जब लेती थाम।
चाहे गर्मी हो या जाड़ा
तुम्हें ज़माना रोज अखाड़ा,
बोर कभी तो होते होगे
रटते-रटते वही पहाड़ा।
सब कुछ गड़बड़ कर देते हैं,
बादल करके चक्का जाम!