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सूरज ने कहा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
कल की तरह आज भी
जनता दोपहर की तपती धूप में खड़ी थी।
और कल की ही तरह
आज भी सूरज आया ;
अपनी तेज सुनहली किरणों को बिखेरता।
लेकिन आज वह उदास था
चूंकि मतगणना केन्द्र पर
सरकारी पहरा था।
आखिर हिम्मती सूरज
अपनी किरणों के साथ
मतगणना पेटियों को देखने गया।
उसने देखा
चुनावी दाव-पेंच में लिप्त लोग
जो बदल रहे थे
हार को जीत में
और सूरज लौटा
थका हारा,
पपड़ियाये होठों पर जीभ फेरते हुए
गुमसुम, उदास
और सूरज ने कहा
जनतंत्र खतरे में है।