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सूरज मुळकै / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
टिम-टिम करता
अणगिणत तारां बिचाळै
पळका मारतो
औ चांद
ठाह नीं किणनैं सोधै है
ई आभै रै जंगळ मांय
भोर हुयां
सूरज जाळ पसारै
रैण-बसेरो छोड
जिनावर-पाखी
भाजता फिरै
चांद, रात हुवण री उडीक में अर
सूरज मुळकै।