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सूरज से यों चंदा बोला / कन्हैयालाल मत्त
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सूरज से यों चंदा बोला-
'सुन रे, सूरज दादा!
मेरे आगे मत बघार तू,
शेखी हद से ज्यादा!
कोरी चमक-दमक दिखलाकर,
दुनिया को बहकाता,
मैं सबको ठंडक देता हूँ,
तू गरमी फैलाता!
दिन का हारा-थका मुसाफिर,
जब घर पर सोता है,
मेरी सुखद चाँदनी में ही,
अपना श्रम खोता है।'
सूरज बोला-'भोले चुनमुन,
तुझको ज्ञान नहीं है,
तूने जो यह बात कही है,
उसमें जान नहीं है।
तू जो-कुछ दुनिया को देता,
मुझसे ही पाता है,
मेरी ही किरणों के बल से,
तू यों मुसकाता है।
सच तो यह है, तू मेरा ही-
नन्हा सह-धर्मी है,
जिसको तू ठंडक कहता है।
वह मेरी गरमी है!'