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सूरज सोच सकने को लेकर / लाल्टू
Kavita Kosh से
सूरज सोच सकने को लेकर
मैंने पहले भी कभी लिखा है
इन दिनों लड़ता हूँ इस शक से कि
सूरज सोचना शायद धीरे-धीरे
असंभव हो रहा है
सूरज सोच सकने के पूर्ववर्ती क्षणों में
वह बूढ़ा भर लेगा उन सभी जगहों को
अपने बच्चे की राख से
जहाँ मेरे पैर हैं
फिलहाल उसे सूरज नहीं सिर्फ एक रुपया
चाहिए या महज कुछ पैसे
मुझे लगता है मैं अभी भी
सूरज सोच सकता हूँ
शक है उस बूढ़े का असंभव ही हो
सूरज सोच सकना