भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज हुवै क्यूं हलाल बाबा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सूरज हुवै क्यूं हलाल बाबा
मामूली कोनी औ सवाल बाबा
दो दाणा लै डूबैला आपां नै
रह-रह क्यूं आवै औ खयाल बाबा
आं रुखाळां ताण लाज गई समझो
बुट्ठी तलवार थोथी ढाल बाबा
आज भलांई काढो आंसू दांई
याद करोला थे म्हानै काल बाबा
आ रात अंधारी पण सोच कांई
आस बंधै : हुवै अगूण लाल बाबा