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सूरज है नाराज अँधेरा तारी है / रंजना वर्मा

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सूरज है नाराज अँधेरा तारी है।
फिर भी यारों जंग हमारी जारी है॥

मिट्टी का दीपक भी है तिल-तिल जलता
नन्हीं चींटी ने कब हिम्मत हारी है॥

छल प्रवंचनाओं के पर्वत हैं ऊँचे
एक सत्य अगणित झूठों पर भारी है॥

बचपन गिरवी चौराहों दूकानों पर
फिर भी तुम कहते कितनी बेकारी है॥

होती है नीलाम औरतों की अस्मत
पल पल जलना शम्मा कि लाचारी है॥