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सूरज / इन्दु जैन
Kavita Kosh से
अपने ही ताप से
पिघला बरस गया
आग की फुहार-सा सूरज
दहकते कोलतार पर
भागते नंगे पैरों को
पता ही नहीं चला
मोटर सवार ने कहा
पैदल चलो तो
लू नहीं लगती !
नंगे पैर ने नहीं सुना--
वर्ना कभी भी वो मोटर
और लू से बदल लेता
रोज़-रोज़ जी पाने की
भट्टी पर
सिकता खौलता अपना
परोसा