सूर्यमुखीक पुंकेसर पर परागकणक अविरल सरंचना होइए / रमेश
रामकेसौरमे रसक परिपाक हैब बन्न नै होइए सूर्जक पिरथी पर उतरला सँ आ ने रोहुआ-बोआड़क डर सँ मारा-पोठीक प्रजनन बन्न होइए जलकरमे। ठेंगीक डर सँ मात्र-जाल सिताहल घास पर थुथुन रगड़ब नै छोड़ि दैए आ महिसा-जों गोझनौटमे पैसि जएवाक डरसँ मनतोड़िया करहड़ उखाड़ब नै छोड़ि दैए दनहिया पोखरिक मरि डाँड पानिमे।
चहड़ा-चिड़ैक लोलक डर सँ सूर्यमुखीक पुंकेसरमे परागकणक सरंचना नै होइए बन्न। तहिना अपुआंग आ हाड़ाक फोंकैब आ लतरब नै भ’ सकैए बन्न कचिया
हाँसूक आदंक सँ। आ ने जोभ जड़िआएब छोड़ि देत खुरपीक रूआब सँ। धथूर आ कनैलक फड़मे जँ माहुर भरब बन्न नै भेलए, त’ गुल्लड़िक धड़, बकरीक थन वा मधुमाछीक छत्तोमे अमृत-रसक सोह कहाँ कहियो सुखाइत अछि ? मानल जे गुलभंटाक खेल बन्न नै भेलए संसद-मार्गमे, तँ करबीरोक पात फटर-फटर बाजब कहाँ छोड़लक-ए-गेनाइक हाथमे ? किंवा अशोक राजपथकें लक्ष्य क’ क’ बरहन्डीक सहका वा गुलेंती उसाहब कहाँ छोड़लनि हें राजीन्दर कामति ? अमतीक काँट पछिलो बेर लागल रहनि
बाबू-भैयाक पदनधोतक ढेकामे आ हुनकर साँचीक डर सँ चौरकाँटी पड़ा नै गेल रहए इसकुल परहक बूथ सँ। मोथा आ चिचोड़क गर्भाशयमे एहू बेर जीवन रस भरि। गेलैए। छपनियाँ चौड़ी मे आ छहरक कातक मोइनमे बकोध्यानम् केर अछैतहुँ चन्नी माछकें जलविहार करैत आइयो देखलनिहें केदार भाइ आ नारायणजी।
ओना रेडियोधर्मिताक विकीरणक लुघशंका पसरल अछि नागासाकी मे तैओ समाचार अछि जे ओतए राति क’ छाउरक ढेरीक बच्चादानीमे होइत अछि गर्भाधान। आ भिनसर क’ टॉरपीडो सन-सन पेंपी आ अँखुआक प्रसव भेल करैए सभदिन। सुनै छी-हिरोशिमामे मृत्यु-दर सँ कतोक बेसी अछि जन्म-दर। आइयो भिनसरे बाड़ीमे देखल गेलए-जे हरियर कंच पात सूर्जकिरणसँ विधिवत् संभोग केलक अछि। तें रचना-चक्र कोनो प्रयोजित नियोग नहि, अपितु एकटा नैसर्गिक प्रक्रिया थिक, जकरा नै छै ककरो डर सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमे।