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सूर्योदय टाइगर हिल / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

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मैंने भी देखा उसे बादलों के पार।
वहीं।
लोगों के चेहरों पर उसकी आभा चमक रही थी। पिताओं के कंधों पर उनके बच्चे थे।

पूछा- क्यों, तुम्हारे बारे में सीताजी ने लिखा है, तुम्हें पता है?

वह चुप। बड़ी देर बाद आया था। थका। हम भी थके।
भीड़ के शोर से परेशान वह सचमुच तमतमा रहा।
हम लोग चाय वालों के चूल्हों के धुएँ से बचने की कोशिश में थे।

फिर वह कानों में फिसफिसाया, सीताकान्त ही नहीं, फ्राँक ओ हारा से भी मैंने
बातें की थीं। अब वह मेरे ही इर्द-गिर्द है। घोड़ागाड़ी से कुचलकर मारा गया
बेवकूफ!

सीता ने यहीं से जहाँ तुम हो खड़े देखा था मुझे।
उसने ऐसे लिखा जैसे लोगांे की भीड़ देख मैं बड़ा खु़श था। और तू यहाँ क्या कर
रहा है, जा उस गाँव में जा, जहाँ मुझसे मिलवाने को नेपाली जी ने तुझे सुबह
सुबह उठाया था। यहाँ तुझे जो नेपाली ड्राइवर ले आया, वैसा ही था उसका बाप।
मेहनती। मेहनत की कमाने सुदूर जगदलपुर गया। ज़मीन का बेटा। तुझे याद है जब
तूने नेपाली जी से बातचीत की थी? रातभर आदिवासियों पर बातें कर सुबह तुझे
एकान्त ढूँढ़ने की चिन्ता थी।
वह हँसा। शोर का रेला उठा भीड़ से।

वह शान्त होते हुए बोला-उस बार मैं तुम लोगों से मिलकर बड़ा खुश हुआ था।
आज नहीं हूँ। हर रोज़ लोगों को चाय पीकर फेंकते देखता हूँ। अरे! ज़मीं और मैं
क्या अलग हैं?

लोगों के चेहरों पर उसकी आभा चमक रही थी। पिताओं के कंधों पर उनके बच्चे
थे। वे सब सूरज के बारे में अपनी थकी हुई आँखों से लिख रहे थे। भीड़ में कहीं
सीताजी खड़े होंगे।

तमतमाहट कम हो गई थी। मुझसे दूर कहीं देखते हुए वह बोला-जा लिख कि
तेरे जैसों से भी बतियाता हूँ मैं। और भूलना मत कि तू फ्राँक और मेरी बातचीत
रात-रात भर पढ़ता रहा है।

फ्राँक ने लिखा था कि सूरज मायाकोव्स्की को जगा आया था। चूल्हों के धुएँ में
आँखें रगड़ते हुए मैं वापस चल रहा था।