सूर्य ग्रहण / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
बहुत दिनों से सोच रहा हूँ,
मन में कब से लगी लगन है।
आज बताओ हमें गुरुजी,
कैसे होता सूर्य ग्रहण है।
बोले गुरुवर, प्यारे चेले,
तुम्हें पड़ेगा पता लगाना।
तुम्हें ढूँढना है सूरज के,
सभी ग्रहों का ठौर ठिकाना।
ऊपर देखो नील गगन में,
हैं सारे ग्रह दौड़ लगाते।
बिना रुके सूरज के चक्कर
अविरल निश दिन सदा लगाते।
इसी नियम से बंधी धरा है,
सूरज के चक्कर करती है।
अपने उपग्रह चंद्रदेव को,
साथ लिए घूमा करती है।
चंद्रदेव भी धरती माँ के,
लगातार घेरे करते हैं।
धरती अपने पथ चलती है,
वे भी साथ चला करते हैं।
इसी दौड़ में जब भी चंदा,
बीच, धरा सूरज के आता।
चंदा की छाया से सूरज,
हमको ढंका हुआ दिख पाता।
सूरज पर चंदा की छाया,
ही कहलाती सूर्य ग्रहण है।
जरा ठीक से समझोगे तो,
इसे जानना नहीं कठिन है।