भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूर्य मगन है / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
सूर्य मगन है
अपने गगन में
बड़ी झील
अपने पानी में
ध्यानस्थ
किनारे दुपहर की
झपकी ले रहे हैं
बासन्ती धूप
पानी से लिपटी पड़ी है
डूबकर इन्हें निहारने में
मर्यादा है
खाँसने तक से
सुन्दरता का यह ताना-बाना
तार-तार हो जाएगा