सूर्य स्नान / दिनेश कुमार शुक्ल
हम प्यास के तट हैं
हमारे घाट पर आना
हमारी तृप्ति की धारा
न जाने किस अतल में
जा छुपी है
न जाने किस नदी का
पाट है ये
न जाने किन प्रवाहों की लिखी
बिसरी कहानी बालुका पर
इसे पढ़ना गुनगुनाना
यदि समय पाना
हमारे घाट पर आना
निनादित मौन सन्ध्या का
विकल करता हुआ बहता
अगोचर समय की धारा
बहाए लिये जाती है
न डरना तुम,
समय की नदी में गहरे उतरना
तैरना, उस पार जाना
दूसरे तट पर तुम्हें मैं फिर मिलूँगा
इस बीच तुमको याद आये
अगर कुछ ऐसा
कि तुमको अकेला कर दे
तो बैठ जाना सीढ़ियों पर,
अस्त होते सूर्य में स्नान करना,
किन्तु उस सूर्यास्त में ही
डूब मत जाना
हमारे घाट पर आना
नदी भी तो कभी पहली बार
आयी थी हमारे तट
हमारे घाट से लगकर
बहुत गहरी
भरी
बहती रही
भूलकर भी नहीं आता याद
वो गुज़रा ज़माना
दूर वह जो
क्षीण धारा बह रही है
पूछना उससे,
बताएगी कथा अपनी
कभी कोमल क्षणों में,
बोलने देना उसे
तुम पूछकर बस मौन हो जाना
और अपने मौन में जब डूब जाना
तब हमारे घाट पर आना
नदी बनकर ।