भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूवटो / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
सूवटो, उड़तो उड़तो जाय।
कुण पत्रै सी पांखां दीन्ही
कुण माणक सी चांच ?
जको फूल फळ पूछै बीं रै
मारै चिड़तोे टांच,
याद लिरातां कारीगर री
उठै काळजै लाय।
सूवटो, उड़तो उड़तो जाय।
कुण किसतुरी केसर नै घस
काढ़ी कंठां लीक ?
जको रूंखड़ो पूछै बीं पर
करै सूवटो बींठ,
जको सरावै खारो लागै
कोनी आवै दाय,
सूवटो, उड़तो उड़तो जाय।
रूड़ो रूप मौत री ध्यारी
बन बावरिया लार
किस्यै जळम रो बैर निकाळयौ
काया राम सुआर ?
जीव लुकोतो फिरै बापड़ो
के जाणै बणराय ?
सूवटो, उड़तो उड़तो जाय।