भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सू-ए-सहर / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
बताऊँ क्या तुझे कैसे
गुज़ारे शाम-ओ-सहर …
वक़्त को थाम लिया था मेरी तन्हाई ने,
और चुप-चाप,
तेरी याद की चादर ओढ़े…
रात भीगी हुई आई थी
दबे पाँव यहाँ!
मैने पूछा जो,
बता क्यों तू अकेली लौटी?
नूर का क़त्रा रोई वो...
औ’ चल दी सू-ए-सहर...
09.01.95