भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सृजन / प्रवीन अग्रहरि
Kavita Kosh से
एक कवि जब कुछ लिख रहा होता है
या कोई संगीतज्ञ जब संगीत में डूबा होता है
या कोई भी सृजनशील व्यक्ति कर रहा होता एक नया सृजन
उस क्षण को पकड़िए, उसका अवलोकन करिये।
उस समय उनकी स्मृतियाँ गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध होती हैं
वो तब इस जमीन में नहीं रहते, संतुलन में नहीं रहते
तब वह दादियों के जादुई किस्से हो जाते हैं।
तब वह बुद्धों के देश के हिस्से हो जाते हैं।