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सृश्टि रोॅ मूल / नवीन ठाकुर 'संधि'

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दुनिया के दस्तुर छेकै
बेटा-बेटी में करै छै खूब्भेॅ अन्तर,
बेटा लेली मंदिर मस्जिद पूजा पाठ पीन्हैं छै जन्तर।

बेटी जनम लेलकोॅ तेॅ भारी दुःख,
बेटा होय जाय तेॅ करमबली एैलोॅ भूप।

सौरी घरोॅमें आवाज सुनी केॅ माइयो होय छै चुप,
जानतैं बापें गुर्राय केॅ बदलै छै रूप।
देखतैं बेटा सब दुःख होय छै छुमन्तर,
बेटा आरो बेटी में छै खूब्भेॅ अन्तर।

जैन्होॅ एैलोॅ छै है दहेजोॅ रोॅ परथा,
बेटी रोॅ नाम सुनी पकड़ै छै माथा।

सुख शांति सब्भे जिनगी सें गेलोॅ,
जे नै चाहै छेल्हां आबेॅ वहेॅ भेलोॅ।
एकरा सें उबरै लेली कहाँ सीखबोॅ मन्तर,
बेटा-बेटी में करै छै खूब्भेॅ अन्तर।

है आपनोॅ-आपनोॅ समझ रोॅ भूल छेकै,
कैन्हें एक्के कोखी सें जनमली बेटी शूल छेकै।

बेटी जनमलै तेॅ एकटा गुलाब रोॅ फूल छेकै,
बेटा-बेटी में अन्तर करना सच में भारी भूल छेकै।
कहै छै ‘‘संधि’’ बेटी दया रोॅ समुन्दर।