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सृष्टि का अनन्त विस्तार / सतीश छींपा

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तुम पूजा हो
मुझ नास्तिक के लिए
तुम्हारा पर्याय कोई ईश्वर नहीं
पर एक द्वार
उस सृष्टि का
जहाँ सृजित होता प्रेम
रहता अटल जीवन
युग-युगान्तर
एक हृदय से दूसरे में
दूसरे से तीसरे
तीसरे से चौथे
चलता अविराम
सृष्टि का अनन्त विस्तार
अटक जाता
तुम्हारे चेहरे
नाक को चूमती नथ में।