भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेंध / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे इंतजार में
सुबह गई
शाम गई

थकी रीढ़
थक गई आँखे

तुम आईं
साथ लाईं
एक लम्बी मोटी दीवार

आशा कुरेदने लगी है
दीवार को
कहीं धोखे से
लगा रखि हो तुमने सेंध कहीं।