भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेज़ारिया तट पर दो गीत / येहूदा आमिखाई / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

समुद्र नमक में बचता है.
येरूशलम के सूखे में बचा रहता है,
और हम जाएँ कहाँ ?
अब झुटपुटे की इस घड़ी में
चुनना है,
यह नहीं कि हमें क्या करना है
या कैसे जीना है
बल्कि ऐसी ज़िन्दगी
जिसके सपने
सबसे कम तड़पाएँ
आने वाली रातों में ।

2
 
‘अगली गर्मी में फिर आना’
या ऐसे दूसरे शब्द
मेरी ज़िन्दगी को थामे रहते हैं
मेरे दिन कटते रहते हैं
उन सिपाहियों की पँक्ति की तरह
जो किसी पुल से गुज़रते हैं
जिसे उड़ाया जाना है ।
‘अगली गर्मी में फिर आना’

ऐसे शब्द किसने न सुने होंगे ?

लेकिन लौटकर कौन आता है ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद  : उज्ज्वल भट्टाचार्य