भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सेट् / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
कहीं पीछे छूट गया
सेट्<ref>एक शहर का नाम है</ref>
घोमरों के क्रन्दन में
मैंने देखा तुम्हे
निष्कलंक
और पापमुक्त
मेरी आँखें भर गईं
तुम्हारी निगाहों से
किसी घोमर का पँख
जो आमुक्त हुआ
मेरे हृदय से
एक पुकार है
हर उस दिशा के लिए जहाँ भी फ़ासले हैं
मैं बता रही हूँ तुम्हारे बारे में
खुद को
उन आवाज़ों में
असम्भव है जिन्हें सुनना
मैं बहुत उदास थी
प्रेम की उस भगदड़ में
तुमने मेरे हृदय को
घर बनाया
इस अप्रतिम ख़ुशी के लिए !
मैं जानती हूँ
कि ख़ुशी
गहन दुःख है
उफ़ ! मेरी पूरी देह
देखो तो
कैसे सिमट गई है
इस हृदय में ।
शब्दार्थ
<references/>