भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेना मैं जाउंगी जरूर / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक गांव में बहुत सी महिलांए सेना में अपना नाम लिखवा देती हैं। एक महिला का पति उसे सेना मंे जाने से मना करता है। कुछ महिलांये उसके पति को मनाने जाती हैं मगर वह नहीं मानता। वह औरत अकेले में भी बहुत समझाती है। नहीं मानता। झलकारी बाई उसे मनाने को आती है। वह महिला अपने पति को क्या समझाती है भलाः

सेना मैं जाउंगी जरूर, चाहे ज्यान चली जावै॥
झलकारी बाई आई है, नया पैगाम ल्याई है
मान बढ़ाउंगी जरूर, चाहे ज्यान चली जाये
फिरंगी अत्याचारी तै, गुलामी की बीमारी तै
निजात पाउंगी जरूर, चाहे ज्यान चली जाये॥
रानी लक्ष्मी बाई का नारा, हम सबनै लागै प्यारा
नारा लगाउंगी जरूर, चाहे ज्यान चली जाये॥
फिरंगी हुया सै लुटेरा, सहन करया सै भतेरा
सबक सिखाउंगी जरूर, चाहे ज्यान चली जाये॥