भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेब के फूल / सत्यनारायण स्नेही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सेब के फूल
खिलने से पहले
तय हो जाते हैं
तरह-तरह के परीक्षण
जुटाए जाते हैं भंवरे
उच्चकोटि के रसायन।
खिलते है सेब के फूल
चमकता है उद्यान
महकती हवाएँ
उत्साहित बागवान।
सेब के फूल
महज़ फूल नहीं हैं
उसके परागण में
छिपी है किसी की किस्मत
किसी की औकात
किसी की रोज़ी
किसी की रोटी
किसी का भविष्य
किसी का वर्तमान
इसीलिए निहारता है
हर बागवान प्रतिदिन
आखिरी पंखुड़ी झड़ने तक
लड़ता है लगातार
मौसम और प्रकृति के
उलटफ़ेर से।
फूल की सुन्दरता से
नहीं चौंधयाती उसकी आंखे
नहीं ख़ुशबू से कोई उन्माद
फल बनते ही खुल जाती है
उसकी धमनियाँ
उमड़ते हैं हृदय के उद्गार।
कविता में सेब
मीठा और सुर्ख लाल
संजीदगी है पहाड़ की
जहाँ नहीं दिखता फूल
जो देता है इसे
फल का आकार।
फल फूल की परिणति है
प्रकृति का उपहार
सेब का फूल झड़ने से पहले
झेलता है
इन्सानी और कुदरती अत्याचार
क्योंकि है सिर्फ़
लाल चमचमाते
फल की दरकार
जिसके लिये सजा है बाज़ार।