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सेवा / रामस्वरूप किसान

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बीं री हेली में
फूटरौ सो मींदर
मींदर में
देवी-देवतांवां री मूरत्यां

बो आथण-दिनगै
आं मूरत्या री सेवा करै-
आनै नुहावै-धुवावै
पैरावै-उढावै
जीमावै-जुठावै
अर आं साथै बतळावै-
हड़मानजी, ल्यौ
थोड़ौ सो‘क तो
और जीमल्यौ

ल्यौ सीता जी
ल्यौ रूकमण जी
कीं हलुवौ तो और ल्यौ
अर थे तो
जाबक ई थोड़ौ
खायौ है रामचन्द्रजी !

हां अब किसन नै तो पूछां
कांईं लेस्यौ
हलुवौ लेस्यौ‘क खीर किसन जी ?

बोलौ, कीं तो बोलौ
रूसग्या के ?
म्हारै सूं कांई रूसणौं
म्हैं तो ठै‘रयौ काळसरियौ बंदौ
गंदै नाळै रो कीड़ौ,
गळतियां रौ पूतळौ
औगणां सू भरी है
म्हारी काया
कांईं सेवा कर सकूं म्हैं थांरी
माफ करज्यौ प्रभु !
बोलौ कांई लेस्यौ ?
एक मालपूवौ तो
ले ई ल्यौ .....

इणी बीच
बारणै सूं आवाज आई-
भूखौ हूं सेठजी !
कीं ठंडौ-बासी
घालौ नीं

देवतावां नै
जीमांवतौ सेठ
खाणै कुत्तै दांई भूस्यौ

मंगतो
बां ई पगां
पाछौ मुड़ग्यो।