सैनिक / नवीन जोशी
सरहद पर इस देश का सैनिक जाने क्या क्या सहता है,
हम सब की नींदों की ख़ातिर हर दम जागता रहता है।
सहराओं में जंगल में और बर्फ़ीले तूफ़ानों में,
इस की बस्ती बसती भी है तो अक्सर वीरानों में।
तस्वीरों को देख देख ये हँसता है और रोता है,
सैनिक का परिवार तो उस के बटुए में ही होता है।
हम जिस मौत से डरते हैं ये उस से खेला करता है,
छाती पर गोली खाता है हँसते हँसते मरता है।
दाँव पे अपनी जान लगाए ये ऐसा मतवाला है,
ये है जियाला भारत माँ का इस का खेल निराला है।
जो सब से पूछा करता है सैनिक से वो बात न पूछ,
उस से पूछ न उस का मज़हब उस से उस की ज़ात न पूछ।
कर्म के आगे धर्म को रक्खे सैनिक वो इन्सान नहीं,
इस के लिए तो देश से बढ़कर और कोई भगवान नहीं।
देश की रक्षा काम नहीं है सैनिक का ईमान है वो,
इस से भिड़ जाए जो दुश्मन सब से बड़ा नादान है वो।