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सैयद हैदर रज़ा के चित्रों के लिए / ज्योति शर्मा
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सैयद हैदर रज़ा के चित्रों को देखकर
बिंदु से निकला है सब कुछ
शुक्र भी बिंदु है रज भी बिंदु
और अंतिम संस्कार के बाद बची भस्म भी बिंदु
बिंदु मेरे माथे पर भी है
जिसपर ध्यान टिकाओ अगर तुम
तुम्हें मेरी आत्मा का परिचय मिलेगा
बिंदु तुम्हारी दोनों आँखों में दो
यह मेरे प्रकाश स्रोत है
उसने रंगोली की तरह बनाई दुनिया
पहले बनाए बिंदु और बिंदु
फिर जोड़ दिया बिंदुओं को
बन गई दुनिया
रेखाओं के बारे में बाद में लिखूँगी
इस जन्म में तो बिंदु ही साधूँगी मैं कवि ज्योति शर्मा