सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में
मशवरे होते हैं यूसुफ़ के ख़रीदारों में
सैर के वास्ते निकला जो वो रश्क-ए-यूसुफ़
बंद रस्ते हुए ठट लग गए बाज़ारों में
ये नया यार की सरकार में देखा इंसाफ़
बे-गुनाह भी गिने था हैं गुनह-गारों में
कहीं ढूँडे से भी मिलते थे न अरबाब-ए-कमाल
जिन दिनों क़द्र-शनासी थी ख़रीदारों में
'क़लक़' इसबात-ए-दहन मुँह को न खुलवाए कहीं
है बड़ी बात अगर बात वही रही यारों में