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सैर मांय अकाळ / मधु आचार्य 'आशावादी’

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काल
बीच स्हैर मांय
मिलग्यो अकाळ
देखतां ई मूंडो लुकोयो
म्हैं निसरमो
अकाळ रै साम्हीं आयो
कर लियो उण सूं सीधो सवाल-
‘कांई स्हैर मांय
मचावणो है घमसाण !‘
उणरै मूंडै मांय
जाणै उरीजग्या मूंग
साव बापरगी सून।
थोड़ी ताळ तो रैयो चुप
पछै खोली जबान-
‘स्हैर मांय बैठा है
केई धनवान
जका रोज घालै
केई घरां मांय घमसाण
अर बणता ई जावै मोटा धनवान
केई मोटै पेट आळा
केई है धोळपोसिया
भाई, म्हैं तो आं सूं डरग्यो
आंनै देख्यां
म्हारो तो जीव ई निसरग्यो
म्हनै भागणो है
म्हैं काळ
म्हनै जीवण रो पड़ जावै अकाळ।‘