सोई न यशोधरा / अनिता मंडा
31
अब जगे हो
बनके बुद्ध तुम
पर ये देखो
सोई न यशोधरा
जब से गए तुम।
32
अम्मा की आँखें
मोतियाबिन्द वाली
आज तक भी
करती रहती हैं
रिश्तों की तुरपन।
33
तुम क्या जानो
कैसी है हलचल
पानी भीतर
मारना आता बस
तुमको तो पत्थर।
34
गुजरा वक़्त
गुज़रता कब है
जब भी देखो
ठहरा रहता है
अपने ही भीतर।
35
बन के याद
गुजरा वक़्त लौटा
मेरे भीतर
रेशा रेशा उतरा
गया वक़्त न गया।
36
पाँव के छाले
तुमको बताएँगे
मज़ा देती हैं
सफ़र की दस्ताने
आजा सुन तो सही।
37
मुझमें भी तो
छटपटा के शौर
सोया है अब
यूँ होती हैं क्या भला
आँखें ख़ामोश कोई।
38
देखो किरणें
रोशनी के गाँव से
आई जगाने
अँधेरे को हराने
चल धीमे पाँव से।
39
चाँदनी सोई
मोगरे पुष्प पर
या रात रोई
किरण परस से
पोंछे है आँसू कोई।
40
ताज आँगन
कितने ही हाथों की
ओढ़ के आहें
मुमताज़ सोई है
धवल रोशनी में।
41
बरस रही
आसमान की आँखें
पिघली होंगी
मन में रखी कई
इच्छाएँ अधूरी-सी।1