सोई सुहागनि साँच सिगार।
तन-मन लाइ भजै भरतार॥टेक॥
भाव-भगत प्रेम-लौ लावै।
नारी सोई सुख पावै॥१॥
सहज सँतोष सील जब आया।
तब नारी नाह अमोलिक पाया॥२॥
तन मन जोबन सौपि सब दीन्हा।
तब कंत रिझाइ आप बस कीन्हा॥३॥
दादू बहुरि बियोग न होई।
पिवसूँ प्रीति सुहागनि सोई॥४॥