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सोए ज़मीर को जगाइए साहब / इसाक अश्क
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सोए ज़मीर को जगाइए साहब
ऊपर से नीचे को आइए साहब
अपना देश ख़ून देकर भी अगर
बच सकता है तो बचाइए साहब
राजनीति तो तवायफ़ है कोठे की
इसे पूजा-घर तक न लाइए साहब
दुश्मनों से तो निपट लेंगे हम
दोस्तों को पास से हटाइए साहब
आईना देखकर आप भी कभी
अपनी करतूतों पर शरमाइए साहब