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सोचकर मुझको ये हैरानी बहुत है / शम्भुनाथ तिवारी
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सोचकर मुझको ये हैरानी बहुत है
दुश्मनी अपनों ने ही ठानी बहुत है
जानकर मैं अबतलक अनजान-सा हूँ
हाँ,उसी ने मुट्ठियाँ तानी बहुत है
दे गया है ग़म ज़माने भर का लेकिन
अब उसे क्योंकर पशेमानी बहुत है
चाहता है दिल से पर कहता नहीं क्यों
ये अदा जो भी हो लासानी बहुत है
दोस्ती का भी शिला मुझको मिला ये
ख़ाक़ मैंने उम्र भर छानी बहुत है
ज़िंदगी में फूल भी काँटे भी बेशक़
चंद ख़ुशियाँ तो परीशानी बहुत है
किसलिए ख़ुद पर गुमाँ कोई करेगा
जब यकीनन ज़िदगी फ़ानी बहुत है
रह सकूँ खामोश सबकुछ जानकर भी
गर मिले मुझको ये नादानी बहुत है
आ सके आँखों में गर दो बूँद पानी
ज़िंदगी के बस यही मानी बहुत है