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सोचती हूँ आज तुमको पढूं / वत्सला पाण्डेय
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सोचती हूँ आज तुमको पढूं
तुम्हारी कल्पना के
सागर में जलपरी सी बनूँ
अपने अंतस में छुपाये हो
विचारों की सीपियाँ जो
उनसे एक एक मोती मैं चुनूँ
सोचती हूँ...
कभी जलकण से हो
कभी विस्तृत पारावार
कल्पनाओ का हो
आलौकिक संसार
इस संसार में विचरण करूँ
सोचती हूँ...
खो रही हूँ मैं
तुम्हारी कल्पना में
गोल और चौकोर सी
अल्पना में
बस तुम्हारे रंग में खुद को रंगू
सोचती हूँ आज तुमको मैं पढूं...