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सोचना ही फ़ज़ूल है शायद / राजेन्द्र टोकी
Kavita Kosh से
सोचना ही फ़ज़ूल है शायद
ज़िन्दगी एक भूल है शायद
हर नज़ारा दिखाई दे धुँधला
मेरी आँखों पे धूल है शायद
इक अजब -सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद
दिस्ती प्यार दुश्मनी नफ़रत
यूँ लगे सब फ़ज़ूल है शायद
किस क़दर चुभ रहा हूँ मैं सबको
मेरे दामन में फूल है शायद