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सोचने का परिणाम / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
कष्ट के परिणाम से हम दूसरों से क्या बड़े होंगे
व्यथा को भुलाने में अकेले हम कौन ऐसा तीर मारेंगे
भले ही चूकने में या निशाना साधने में हुनर दिखला लें
तथा यह भी
कि हरदम सोचते रहना किसी की शुद्धता उत्कृष्टता का नहीं लक्षण है
गधा भी सोचता है घास पर चुपचाप एकाकी प्रतिष्ठित हो
कि इतनी घास कैसे खा सकूंगा
और दुबला हुआ करता है।