भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोचवा री वात / कुंदन माली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भगवान
जनाबर रो जमारो
देईन, गदेड़ा नै
अेक ईज़ सरत पे
संसार मैं मेल्यो
के’ वो आपणै
जीवते जीव
वणती कोसिस
प्रजापत रो
बोझ ढोवैला

पण
अेक गदेड़ा रे
मरवा पछै
प्रजापत री चाक
प्रजापत रो भाग
प्रजापत रो अवाड़ो
भगवान रो अखाड़ो
ठप्प तो नीं
होवैला ?